Sunday 6 October 2013

बचपन की रामलीला...


याद है मुझे अपने बचपन की वह रामलीला,
जिसे देखने का जोश कभी न होता था ढीला।

इतनी भीड़भाड़ मगर हर बार देखनी होती थी,
राम, लक्ष्मण और सीता के त्याग की  गाथा।

घर से कुर्सी ले जाना वहां बैठ मूंगफलियां खाना,
खूब हंसना, मस्ती करना और रात भर जागना ।

राम और सीता को देखकर दोनों हाथ जोड़ना,
हनुमान के आने पर तालियाँ बजा शोर करना।

रावण की भयानक हंसी कितना हमें डराती थी,
सीता की व्यथा तो मुझे हर बार रुला जाती थी।

केकैयी को देखने से मन में नफरत हो जाती थी,
मंथरा को हर बार हमारी एक गाली तो पड़ती थी।

राम का बाण चला राक्षस रावण संग युद्ध करना,
अंत में रावण को मार अपनी सीता को घर लाना।

भारत मिलाप देख कर मन में नए सपने संजोना,
मिलजुल के रहने का पाठ हमेशा चाव से सीखना।

रामलीला का हर एक संवाद कंठस्थ होता था,
फिर भी हर बार देख भरपूर आनंद मिलता था।

बचपन की क्या कहें, उसकी हर बात निराली थी,
तभी हमने बचपन की हर याद मन में बसा ली थी।

आज सोचो तो वह सब एक सपना सा लगता है,
वही बचपन की रामलीला देखने को मन करता है।

No comments:

Post a Comment