Sunday 28 July 2013

आज नहीं तो कभी नहीं


अभी भी नहीं तो फिर कब

आप नहीं तो और हो कौन

सुख आपके दुःख भुगते कौन

देश नहीं तो किसके लिए

बोलना नहीं मौन हो क्यों

कष्ट हमारे निवारण किसका

यहाँ नहीं तो और जाएँ कहाँ

लड़ाई आपकी परिणाम किसे

व्यथा तो है दुर्दशा किसकी

चिंता समय की बेबस कौन

नींद की चाह सोये कोई कैसे

खुली आंख पर सपने किसके

द्वन्द मन का तो युद्ध कहाँ

बदलाव चाहिए बदले कैसे

खुद का युद्ध लडेगा कौन

हिम्मत आपकी साथ सबका

अब परिवर्तन रोकेगा कौन

नया सवेरा ला अंधकार मिटा

ये प्रयास आपका करेगा कौन?? 

Monday 22 July 2013

नारी का प्रेम और त्याग..

नारी के पति प्रेम प्यार और
त्याग की अजब गाथा है।
राम की भक्ति में चूर
शबरी का अनोखा प्रेम,
गांधारी का पति का साथ देना
आँख पे पट्टी बांधना,
सावित्री का पति के प्राण बचाने को
यमराज से मिलना,
सीता का महलों का आराम छोड़ कर
वन में साथ जाना,
उर्मिला का पति बिन 14 साल
अकेले ही जीवन काटना,
सब भारतीय संस्कृति का परिचायक है,
अदभुत है।

Thursday 18 July 2013

तू तो मौत का सामन है..


जीवन तेरा अपमान है
तू  मौत का सामान है

नियति में मरना लिखा है
क्यूंकि तू जन्मा इंसान है

कभी खाके, कभी भूख से
कभी जागकर,कभी सोकर

कभी बीमारी और रोग से
कभी प्रकृति के प्रकोप से

कभी ज्ञान के सागर में
कभी अज्ञानता में डूब के

कभी धर्म के आडंबर से
कभी अधर्म के समुंदर मे

कभी प्रभु के तीसरे नेत्र से
कभी इंसान रूपी दैत्य से

कभी मुलायम बिछौनों पे
कभी ठन्डे मुर्दा से फर्श पे

कभी  अमीरी के घमंड से
कभी घोर गरीबी के दंड से

कभी यौवन के उन्माद से
कभी मदिर  के प्रसाद से

कभी दुश्मनों के  वार से
कभी परिवार के प्रतिकार से

कभी समाज के भय से
कभी खुद के निर्णय से

कभी ऊपर की लालसा से
कभी नीचे गिर के धडाम से

कभी अपनों के हाथों से
कभी परायों के पापों से

कभी ऊँचे उड़ते आकाश में
कभी गहरे डूबते पाताल में

कभी भोजन के कुपोषण से
कभी सामंतवादी शोषण से

कभी बाबाओं के पाखण्ड से
कभी अपने बचपन उद्दण्ड से

कभी प्रियतम के प्यार से
कभी दुष्ट के बलात्कार से

कभी शादी के आयोजन से
कभी दहेज़  के  प्रलोभन से

कभी संस्कारों के  दोष से
कभी जातिवालो के क्रोध से

कभी सरकार की नीति से
कभी नेता की राजनीति से

कभी टैक्स की बेचारगी से
कभी न्याय की लाचारी से

जनम लेते भविष्य तो तय है
इन्सान बन जीने का भय है।

मृत्यु तेरी बिलकुल निश्चित है
यही जन्म लेने का प्राश्चित है।

Monday 15 July 2013

प्रभु का नाम जपो..


ईश्वर का बुलावा आए
इक दिन सबने जाना है।

जब अंत समय है आता
कोई साथ न निभाता है।

खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ जाना है।

साथ कुछ नहीं जाता
सब यहीं छूट जाता है।

मोहमाया को छोड़कर
भक्ति में मन लगाना है।

प्रभु का नाम जपते-जपते
वैकुण्ठ में स्थान पाना है।

अगला जन्म मिले ना मिले
पहले यही जनम सुधारना है।

अपने कर्म करके मिटटी में
वापिस लीन हो  जाना है।

Sunday 14 July 2013

अनजान से लोग..


जिस दुनिया में हम रहते, है कुछ अधूरी,
कब कहाँ खो जाये किसी को खबर नहीं।

सब कुछ ख़त्म कर डाला बाकि क्या बचा,
हर मन में पाप,लालच लूट का कारण बना।

खुद बनाई दुनिया अपना बस नहीं चलता,
हर किसी को दूसरा अपना दुश्मन दिखता।

अंत आता देखकर भी सब बने हैं अनजान,
अपनी धरती पर हर शख्स हो गया मेहमान।

अपनी दुनिया तो अब हमसे संभल न रही,
नयी दुनिया खोजने में पूरी ताकत झोंक दी।

खुद के हाथों सब कुछ हमने दिया बिगाड़,
मिली थी जो जन्नत मिल सबने दी उजाड़।

अपनी ही धरती के हम कैसे शत्रु हो गए हैं,
स्वर्ग पाने की चाहत में इसे नर्क कर गए हैं।