Sunday 30 June 2013

नेता मेरी नज़र से ..


राजनीती का खेल है लोग मिमियाते रहें और भेड़िये शेर की खाल ओढ देश पर राज करते रहें। भारत में लोकतंत्र का मतलब है नेता, उसकी जेब और उसका पेट। वैसे अगर देखें तो इस देश में सभी राजनेता व राजनैतिक दल लगभग एक जैसे है, सत्ता में बैठे हो तो ठग और सत्ता से बाहर बेखबर नज़र आते है। कहने को तो हर नेता देश की सेवा का दम भरता है परन्तु वास्तविकता में अपने परिवार की सेवा ही उसका प्रथम कर्तव्य है।
'नेता जब तक जिंदा है हमेशा रहे गरीब, नेता मरे तो हो जाये शहीद।' 
नेता वो है जो गद्धी पर बैठने के लिए किसी हद्द तक जा सकता है। अपने से बड़े नेता के जूते साफ़ कर सकता है। दफ्तर में झाड़ू तक लगा सकता है। शर्म और बेहयाई की सीमा पार करके देश की बजाय व्यक्ति विशेष के लिए जान भी देने को तैयार हो जाये। किसी पर बन्दूक उठाने में अपनी शान समझते हैं। परिवारवाद अब देश के हर नेता का मानो धर्म है।
शर्म, दया और नेता विपरीत शब्द हैं। मौकापरस्ती और लालच नेता के पर्याय हैं। जेब नोटों से भरे हैं, पेट कभी नहीं भरते फिर भी गरीब के गरीब रहते है, ऐसे हमारे देश के नेता हैं। देश पर विपत्ति आये तो अब क्या करना है? आपदा से तो निपटना है । आपदा के बाद सरकार में बैठे ज्ञानी नेता लोग नया टैक्स लगाकर हम पर मानो अहसान चढ़ाते है और फिर राहत कोष का झोला फैला हमसे ही भीख मांगते है। स्विस बैंकों में इतना कला धन जमा करने वाला देश अचानक से गरीब हो जाता है? फ़ोर्ब्स की लिस्ट में टॉप पे आने वाले उद्योग्पती भी ना जाने कहाँ खो जाते हैं।
पार्टी कोई भी हो हर नेता यहाँ लालची है। बस कोई थोडा कम बाकि सब नेता लालच की हर सीमा को पार कर जाते हैं। नेता अगर सुधर जाये और जनता के हित का सोचे तो वो नेता काहे का? लालच का दूसरा नाम ही नेता है।नीतियाँ इनकी, लालच इनका, लूट-खसोट इनकी और खामियाजा बेचारा आम आदमी अपनी जान गंवाकर चूका रहा है।
नेता जादू करने में उस्ताद हैं। उनके जादू की छड़ी घूमते ही खाली बैंक नोटों से भर जाते हैं, उनकी प्रॉपर्टी दिन दूनी रात चौगुनी बढती है। सरकारे संवेदनहीन हो गयी हैं उनकी संवेदना कहीं खो सी गयी हैं। सरकारें बदलने से सिस्टम तक बदलता नहीं है और नेता तो हमेशा एक समान रहता है। ऐसे में आम आदमी का जीवन क्या ख़ाक बदलेगा? वो तो सिर्फ एक मोहरा है, कभी इससे पिटता है तो कभी उससे। कुछ राज नेताओं की हालत देख कर समझ आता है कि कभी-कभी सालों का संघर्ष थोड़ी सी नासमझी से व्यर्थ जाता है । सरकार में बैठे नेताओं को खबर हो या नहीं हो क्या फर्क पड़ता है? बेचारे आम इन्सान ने तो हर हाल में मरना है। नेता और  उनकी पार्टी के लिए तो जनता इंसान नहीं सिर्फ निर्जीव शरीर भर है।
दे दिया ब्यान, हो गया आपका काम, चलिए नेता जी साहब अब माथे से पसीना पोछिये और घर जाकर चैन की नींद सो जाईये । सुबह उठकर फिर किसी को बलि का बकरा बनाना है। लोगो ने अब पैसे को खुदा बना दिया है। देश की आधी आबादी को भर पेट भोजन हीं मिलता है क्यूंकि शासन हमेशा खुद का पेट भरता है, फिर भी हमारा नेता तो ऐसा है कि उसका पेट खाली का खाली रहता है।
जो लोग समाज को बदलने और जनता के हितो के लड़ने के लिए उठे थे आज अपने हितों और बैंक लॉकारों को बदलने में जुटे बैठे हैं। इन्ही नेताओं ने नैतिकता का पतन किया है। इन्ही की वजह से अब हर चीज़ व्यापार का सामान हो गयी है। हालत ये हो गयी है कि अब हम हर किसी को शक की नज़र से देखते हैं। हर बात पर शक करते हैं। जब तक कोई नेता न मरे तब तक कहीं भी धुंआ नहीं उठता और कोई रोष भी नहीं दिखाता । नेता का जो काम है उसने वही तो करना है। वोट और वोटर(आम जनता नहीं) उसकी लाइफ-लाइन हैं। इसलिए उसने साम, दाम, दंड और भेद सब अपनाना है। लोगो को जात-पात और धर्म के नाम पर उकसाना और लड़ाना है। जनता नेताओं के इशारों पे घूमती है, इसीलिए तो वो उन्हें घूमाते हैं। देश के लगभग हर नेता के अन्दर अभी भी सामंती खून है।
जब तक नेता खुद को जनता का सेवक नहीं समझेगा, अपनी पार्टी का गुलाम बन के रहेगा, यकीन मानिये वो सिर्फ अपनी जेब भरेगा देश में कुछ भी नहीं बदलेगा।अपने से ऊपर देश के हित की भावना जब तक नेता के मन में नहीं होगी जनता को सिर्फ धोखा मिलेगा।
शिक्षा से ज्यादा बनावटी चकाचोंद और आसान ज़िन्दगी जीने का लालच और पश्चिमी सभ्यता के अंधाधुन्ध अनुसरण का असर है कि युवाओ को लगता है खिलाडी या अभिनेता की बजाय वो नेता बनके देश लूट पायेगे । अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए धन जोड़ पाएंगे। खादी पहनो, नेता बनो और खुद का कल्याण करो। सिर्फ राजनीती में ही रिटायरमेंट का कोई रूल नहीं है और न ही किसी नेता में कुर्सी छोड़ने की इच्छा शक्ति है। यही सन्देश सब तक जा रहा है । इसीलिए तो आज युवा का राजनीती और नेताओं से मोह भंग हो गया है।

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