Monday 25 February 2013

तंत्र भ्रष्ट.. राजा मस्त.. प्रजा त्रस्त.. फिर भी हम हैं लोकतंत्र। 


आज सुबह न्यूज़ पेपर उठाया तो दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का ब्यान पढ़ा कि 'अगर बिल नहीं भर सकते हो तो बिजली कम खर्च करो।' "कूलर मत चलाओ, पंखे से काम लो।" हां जी!! आप के लिए ये सब बातें कहना कितना आसान है। आप खुद तो AC कमरों में बैठे रहते हैं और नए फरमान जारी करते है। आपने कौन से बिल भरने होते हैं? सरकार आपके सारे खर्चे उठती है।
तो जरा भगवान् से भी तो कहिये कि दिल्ली पर मेहरबान रहे और कभी गर्मी न आने दे। क्यूंकि हमारी बात तो ना आप सुनती हैं और ना ही भगवान्। आपको दिल्लीवालों के पैसे तो खूब दिखते हैं, लेकिन उन खर्चों का क्या जो महंगाई ने बड़ा दिए हैं?  
आपने सत्ता में आते ही तो बिजली के फर्र फर्र दौड़ने वाले मीटर लगा दिए थे। अब बिल तो ज्यादा आना ही था। वैसे भी यहाँ आम आदमी की सुनता ही कौन है?
अभी कुछ दिन पहले यही महिला मुख्यमंत्री दिल्ली की लड़कियों को सुरक्षित रहना है तो रात में घर से बाहर ना निकलो का उपदेश दे रही थी। 
हैरानी होती है, जिस महिला को दिल्ली की जनता ने चुन कर भेजा सत्ता पर बिठाया, आज वह सिर्फ नसीहत देती है। पर आपके लिए कुछ करने को तैयार नहीं है। किसके भरोसे रहे बेचारी ये आम जनता?
हाल ही में इन्हें टीवी पर सोनिया गाँधी के हाथ चुमते देखा गया था। हाँ भाई, आप तो उनके ही हाथ चूमेंगी। क्यूंकि जिस जनता ने इतने वोट दिए, आपको जिताया और गद्धी पर बैठाया, उसे तो आप लात मरती हैं और अपमानजनक बातें कहती है। बिना गलती का ही कसूरवार ठहरा देती हैं। 
शायद हर नेता को लगता है कि वो तो अजर और अमर है। पांच साल मानों पांच जनम है, कि दुबारा जनता के बीच न जाना पड़ेगा। मगर देवी जी ये तो आप जैसों की खुशफहमी है। आना तो जनता के पास ही पड़ेगा फिर से हाथ जोड़कर। फिर इतना अहंकार किसलिए है? 
आज सत्ता तो जैसे आप नेताओं के घर की जागीर ही बन गयी है। राष्ट्रमंडल खेलों के चलते जो लूट खसोट हुई, उससे कौन अपरिचित है? लेकिन किसी नेता को कब पकड़ा जा सकता है? आप नेतागण तो हर कानून से परे हैं।
इन्ही की दया से कभी भी पानी के दाम बढ़ जाते है। बिजली कम्पनिओं की मनमानी भी इन्ही के दम पर है। किसी दिन हवा में सांस लेना भी मुश्किल होगा, कहेंगी की आप पहले टैक्स दो और अगर नहीं दे सकते तो सांस मत लो। 
अब हम अपने ही घर में दुत्कारे जाते है, गाहे-बगाहे अपमानित किये और चिढाये जाते है। आम जनता किस तरह से अपना गुजारा करती है ? कैसे अपने बच्चों को पढ़ाती है, ये नेता लोग क्या जाने ?
आज तो स्थिति ये आ गयी है कि सिविक सुविधाओं के लिए भी गालियां सुनने को मिलती है और अधिक दाम भी हमें ही चुकाने पड़ते हैं।

1 comment:

  1. अति निंदनीय परिस्तिथि है की आज आम भारतीय नागरिक अपने देश की व्यवस्तथा के प्रति गहरे अविश्वास के मार्ग की ओर अग्रसर है। इसका अवश्यम्भावी कारण नेताओं की अचेतनावस्था है जो निजस्वार्थ के परे कुछ और नहीं सोच सकते। जब-तब किसी ने भी इस नक्कारखाने में तूती बजानी चाहि, अविलम्ब उस व्यक्ति के विरुद्ध, सभी नेतागण, एक सुर में समूहगान गाते दिखाई दिए। इसीलिए वर्तमान काल में, आम नागरिक अब, लगभग नेताओं की क्रिया-शैली और उनके कार्यकलापों से आँखे मूँद कर बैठ गया है।
    ये नेता और जो अलग अलग मंत्रालयों में कुर्सियों पे विराजमान हैं, निर्विघ्न रूप से अपने कु-कार्यों में संपूर्ण निर्लज्जता से लग्न हैं।

    आपका ये लेख, दिल्ली की मुख्यमंत्री एवं दुसरे नेताओं की मानसिक दशा का अद्वितीय चित्रण करता है।

    इस अदभुत लेख के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद।
    शुब्रत मुखर्जी

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